Class 10th Sanskirt Subjective Question Sent UP Exam 2024-25

Class 10th Sanskirt Subjective Question Sent UP Exam 2024-25

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा आयोजित कक्षा 10th सेंटअप परीक्षा का प्रश्न पत्र बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के द्वारा अपना विद्यालय स्तर पर भेजा जाता है और अपना विद्यालय पर ही एग्जाम लिया जाता है आप लोग को पता चल गया होगा सेंटअप परीक्षा का प्रश्न पत्र कहां से आता है

Sent-up परीक्षा समय सारणी और परीक्षा की तिथि

बिहार बोर्ड के द्वारा आयोजित की जाने वाली सेंटर परीक्षा का समय तिथि जारी कर दिया गया है मैट्रिक सेंटर परीक्षा 19 नवंबर से शुरू हो रही है और 23 नवंबर तक यह परीक्षा चलेगी किसी परीक्षा में मुख्य विषय जैसे हिंदी अंग्रेजी गणित विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के प्रश्न पत्र शामिल होंगे परीक्षा की तारीख सभी विद्यालयों में एक ही जैसा होता है इसलिए छात्र अपने स्कूल में जाकर रूटिंग को जरूर पता कर लें

        सेंट अप परीक्षा का महत्व

बिहार बोर्ड के अनुसार इस परीक्षा के फेल होते है अनुपस्थिति रहते है तो फाइनल परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड जारी नहीं किया जाएगा

यदि आप भी सेंट अप परीक्षा देने जा रहे हैं या देने वाले हैं तो आप सभी केंद्र परीक्षा में भाग लेना अति आवश्यक है सेंटर परीक्षा का उद्देश्य छात्रों की बोर्ड परीक्षा से पहले उसकी तैयारी को जांच किया जाए और तैयारी को बेहतर किया जाए ताकि वह फाइनल परीक्षा में किसी भी प्रकार में उनको दिक्कत ना हो और उनको जो भी कमजोरी है वह उसको सुधार सके इसलिए सेंटर परीक्षा लिया जाता है सेंटर परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने वाला छात्रों को बोर्ड परीक्षा मैं उत्तीर्ण होने के बाद अस्त में विश्वास बढ़ता है इसके साथी यदि कोई सेंटर परीक्षा में सफल नहीं हो पाते हैं तो वैसे छात्र एवं छात्राएं वार्षिक परीक्षा में नहीं बैठने का अनुमति दिया जाएगा इसलिए सेंटअप परीक्षा का आयोजन किया जाता है

 

 

सेंट अप परीक्षा का कॉपी कहां पर जांच होता है तो आपको बता दे की मैट्रिक सेंट अप परीक्षा का कॉपी आपके स्कूल के स्तर पर जांच किया जाता है

Subjective Question Answer 

लघुउत्तरीय प्रश्नाः (16 अङ्काः)

5. निम्नलिखित में किन्हीं आठ प्रश्नों के उत्तर दें-

(क) पटना के मुख्य दर्शनीय स्थलों का नामोल्लेख करें।

(ख) स्वामी दयानंद ने समाज के उद्धार के लिए क्या किया ?

(ग) ‘मङ्गलम्’ पाठ की विशेषताओं का वर्णन करें।

(घ) शैक्षिक संस्कार कितने हैं? उनके नाम लिखें।

(ङ) नरक के कितने द्वार होते हैं? उनके नाम लिखें।

(च) स्वामी दयानंद सरस्वती ने किस समाज की स्थापना की भी एवं स्थापना वर्ष लिखें।

(छ) वेदाङ्गों की संख्या एवं उनके नाम लिखें।

(ज) देवव्रत कौन था तथा उन्होंने क्या प्रतिज्ञा की ?

(झ) व्याघ्रपथिक कथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

(ञ) रामप्रवेशराम किस गाँव का रहनेवाला था तथा उसने किस परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था?

(ट) भीष्मप्रतिज्ञा के आधार पर धीवर के चरित्र का वर्णन करें।

(ठ) धार्मिक व्यक्ति ने वृद्ध बाघ को क्या उपदेश दिया था?

(ड) ‘मंदाकिनीवर्णनम्’ से हमें क्या संदेश मिलता है?

(ढ) अलसकथा पाठ के आधार पर आलसियों की कितनी संख्याएँ थीं? 

(ण) ‘अलस ‘कथा’ पाठ का सन्देश क्या है?

(त) धर्म और विद्या की रक्षा कैसे होती है?

5. उत्तर (क) संग्रहालय, उच्च न्यायालय, सचिवालय, गोलघर, तारामण्डल, जैविक उद्यान, मौर्यकालीन अवशेष, महावीर मंदिर, गुरुद्वारा आदि पटना के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

(ख) स्वामी दयानंद ने समाज के उद्धार के लिए प्रचलित कुरीतियों का खुला विरोध किया। उन्होंने बालविवाह समाप्त करवाने, मूर्तिपूजा का विरोध करने और छुआछूत समाप्त कराने के लिए कार्य किया। उन्होंने अपने सिद्धांतों के प्रचार के लिए आर्यसमाज नामक संस्था की स्थापना की।

(ग) ‘मङ्गलम्’ पाठ में ईशावास्योपनिषद्, कठोपनिषद्, मुण्डकोपनिषद् तथा श्वेता श्वतरोपनिषद् के पाँच मंत्र हैं, जिसमें सत्य, आत्मा, ईश्वर-प्राप्ति हेतु प्रयास तथा आत्मनिश्छल भाव पर विशेष प्रकाश डाला गया है। इसमें ब्रह्मविषयक एवं आत्मविषयक ज्ञान की महत्ता बतलाई गई है। महर्षि वेदव्यास का कहना है कि सत्य ही मोक्ष का द्वार है। आत्मा सूक्ष्म-से-सूक्ष्म तथा विशाल-से- विशाल है। इस रहस्य को वे ही समझ पाते हैं, जो अपने को अज्ञानी एवं ईश्वर का अंश मानते हैं।

(घ) शैक्षणिक संस्कार पाँच हैं। शिक्षा संस्कारों में अक्षर-आरम्भ, उपनयन, केशान्त, समावर्तन आदि संस्कार प्रकल्पित हैं। अक्षर-आरंभ के अन्तर्गत अक्षर-अंक लेखन-शिशु प्रारम्भ करता है। उपनयन में अध्ययन- स्वाध्याय-शिक्षण करता है। शिक्षा समाप्त होने पर गुरु-शिष्य को गृहस्थ जीवन में जाने के लिए घर भेज देते हैं।

(ङ) नरक के तीन द्वार हैं- काम, क्रोध और लोभ। ये तीनों द्वार अपने-आप को नष्ट कर देता है। इसलिए इन तीनों को त्याग ही देना चाहिए।

(च) स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्यसमाज की स्थापना 1875 में मुंबई नगर में की। आर्यसमाज वैदिक धर्म और सत्य के प्रचार पर बल देता है। यह संस्था मूर्तिपूजा का घोर विरोध करती है। आर्यसमाज ने नवीन शिक्षा-पद्धति कोअपनाया और इसके लिए डी॰ए॰वी॰ नामक विद्यालयों की समूह की स्थापना की। आज इस संस्था की शाखाएँ-प्रशाखाएँ देश-विदेश के प्रायः प्रत्येक प्रमुख नगर में अवस्थित हैं।

(छ) वेदाङ्गशास्त्र छः हैं। वे शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष हैं। शिक्षा उच्चारण प्रक्रिया का ज्ञान कराती है। कल्प सूत्रात्मक कर्मकाण्ड ग्रंथ है। व्याकरण वर्ण, शब्द, वाक्य आदि का अध्ययन करता है। निरूक्त का कार्य वेद के अर्थ का बोध करना है। छन्द सूत्र ग्रंथ है। ज्योतिष वेदांग ज्योतिष ग्रंथ है।

(ज) देवव्रत महाराजा शान्तनु का ज्येष्ठ पुत्र था। देवव्रत को मालूम हुआ कि उनके पिता शांतनु सत्यवती से विवाह करना चाहते हैं, परंतु सत्यवती के पिता इस शर्त पर विवाह करने के लिए तैयार हो रहे थे कि शांतनु के बाद सत्यवती का पुत्र ही राजा बने। सत्यवती के पिता की शर्त को स्वीकार करने के बाद देवव्रत ने प्रतिज्ञा किया कि मैं राज्य का अधिकारी नहीं बनूँगा, बल्कि आजीवन अविवाहित रहूँगा एवं अखण्ड ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करूँगा। असाधारण प्रतिज्ञा होने के कारण देवव्रत की प्रतिज्ञा को ‘भीष्मप्रतिज्ञा’ कहा जाता है तथा देवव्रत को ‘भीष्म पितामह’ कहा जाता है।

(झ) ‘व्याघ्रपथिककथा’ में सोने के कंगन के लोभ के कारण पथिक मारा गया। इससे यही शिक्षा मिलती है कि हमें लोभ नहीं करना चाहिए। लोभ हमें विनाश की ओर ले जाता है।

(ञ) राम प्रवेश का जन्म बिहार राज्य अन्तर्गत ‘भीखनटोला’ नामक गाँव में हुआ था। वे पुस्तकालयों में अनेक विषयों की पुस्तकों का अध्ययन किया करते थे। वे अध्ययन को छात्रों की पूजा मानते थे। अपने परिश्रम के परिणामस्वरूप केंद्रीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने में वे सफल रहे।

(ट) धीवर अपनी पुत्री सत्यवती का भविष्य सुरक्षित करना चाहता है। वह उसकी शादी भी अच्छे वर एवं कुल में करना चाहता है। इस पाठ के आधार पर धीवर तेज, कुशल एवं दूरदर्शी मालूम पड़ता है। अपने मकसद हेतु वह देवव्रत भीष्म से आजीवन ब्रह्मचर्य पालन की प्रतिज्ञा करा लेता है।

ठ) वृद्ध बाघ ने पथिक को किसी धार्मिक द्वारा दिए गए उपदेश के विषय में यह कहा। उसने बताया कि युवावस्था में वह अतिदुराचारी था। युवावस्था में अनेक गायों और मनुष्यों के वध करने के पाप के कारण वह निःसंतान और पत्नीविहीन हो गया था। तब एक धार्मिक व्यक्ति ने पापमुक्त होने के लिए बाघ को उपदेश दिया कि आप दान-पुण्य किया करें।

(ड) मंदाकिनीवर्णनम् महर्षि वाल्मीकिकृत रामायण के अयोध्याकांड के 95वाँ सर्ग से संकलित है। इससे हमें यह संदेश मिलता है कि प्रकृति हमारे चित्त को हर लेती है तथा इससे पर्यावरण सुरक्षित रहता है। प्रकृति की शुद्धता के प्रति हमें हमेशा ध्यान देना चाहिए।

(ढ) अलसकथा पाठ के आधार पर आलसियों की संख्याएँ चार थीं। चारों आलसी पुरुष आग लगने पर भी घर से नहीं भागे। वे शोरगुल सुनकर जान गए थे कि घर में आग लगी हुई है। वे चाहते थे कि कोई धार्मिक एवं दयालु व्यक्ति आकर आग पर जल, वस्त्र या कंबल डाल दें, जिससे आग बुझ जाए और वे लोग बच जाएँ।

(ण) अलसकथा पाठ का संदेश है कि आलस सबसे बड़ा शत्रु है। आलस करने वाला व्यक्ति दूसरों की दया पर जीता है। आलसी को आलस के कारण अपना जीवन रक्षण भी नहीं हो पाता है। इस प्रकार के लोगों से समाज विनष्ट होता है। यदि जीवन को सफल करना है तो आत्मनिर्भर बनकर कठिन परिश्रम करना चाहिए।

(त) सत्य मार्ग पर चलकर अपने कर्त्तव्य का पालन करने से स्वधर्म की रक्षा होती है तथा बार-बार अभ्यास करने से अर्थात् सुनकर, बोलकर, पढ़कर, लिखकर अभ्यास करने से विद्या का अर्जन तथा रक्षण होता है।

 

 

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